kanchan singla

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वो सूखा गुलाब

वो सूखा गुलाब

उसकी डायरी में रखा हुआ
उसकी यादें संभाले हुए
जब बरसो बाद मिला उसे 
उसकी डायरी के पन्नों के बीचों बीच
जो यादें अब तक उस सूखे
 गुलाब की तरह सूख चुकी थी
अब वह भी ताज़ा हो गई
गुलाब सूख सकता है पर
उसकी महक कभी नहीं जाती
डायरी के पन्नों में उसकी महक
जैसे रच गई थी
वैसे ही यादें भी सूख कर ताज़ा हो जाती हैं
कभी ना कभी।।

लेखिका - कंचन सिंगला 
लेखनी प्रतियोगिता -04-Aug-2022

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10 Comments

Punam verma

05-Aug-2022 08:43 AM

Very nice

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Abhinav ji

05-Aug-2022 07:37 AM

Very nice👍

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Saba Rahman

05-Aug-2022 12:47 AM

Nice

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